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दर साहब से प्रथम मुलाक़ात

 

1958 की वर्षा ऋतु की छुट्टी के खत्म होने के 2-4 दिन पहले मैं शिक्षक के रूप में चुने जाने के बाद नेतरहाट पहुंचा था।शैले के ऊपरी तल पर श्री दर रहते थे।एनेक्सी में अतिथि-कक्ष था जिसमें ठहराया गया था।एनेक्सी में मैं अकेला था।घने कोहरे और उसपर हल्का प्रकाश, वातावरण कुछ भयावह लग रहा था। दूर तक सन्नाटा पसरा हुआ था। सिर्फ पंछियों का कलरव बीच बीच में सुनाई देता था।सन्नाटे में अकेलापन और खाने लगा।मन ही मन निश्चय कर लिया कि यहाँ रहना मेरे लिए संभव नहीं हो सकेगा।भोजन का निमंत्रण दर साहब के यहाँ से आया।दर साहब के निमंत्रण पर भन आनंदित हुआ कि कम से कम प्राचार्य से भोजन के वक्त ही मन की बात कह दुंगा।भोजन का समय होते ही झटपट श्रीदर के आवास पर पहुँच गया।वहाँ श्रीमती दर से मुलाकात हुई।श्रीमती दर थोडा धीरे धीरे बोलती थीं।मुझसे अनेक प्रश्न किए और मैं यथासंभव उत्तर देता रहा।

इसी बीच दर साहब आए और उन्होंने तो प्रश्नों की बौछार लगा दी: यथा कैसे आए, रास्ते में तकलीफ तो नहीं हुई, सुंदर घाटी, शाल के लंबे लंबे पेड़, घाटी में उगे काॅसमश के पीले फूल, नेतरहाट की सुंदरता, शैले, शैले का उद्यान, विद्यालय का वर्णन बहुत तत्परता और सुगमता से रूचि लेकर करने लगे। मैं तो सुनता रहा और अन्यमनस्क भाव से उत्तर देता रहा। हम सभी डाइनिंग टेबल पर जा बैठे।एक ओर श्रीदर और दूसरी ओर श्रीमती दर बैठीं।पुरी और सब्जी बनी थी, अचार की शीशियाँ रखी थीं।अचार दर साहब ने स्वयं अपने हाथों से बडी ही आत्मीयता के साथ निकालकर दिया।साथ ही प्रश्नों के बौछार चलते रहे:- खेलकूद, रुचि, पढाई-लिखाई संबंधित अनेक प्रश्न।अंत में मैंने अपने कल प्रातः नेतरहाट से लौटने की बात कह डाली।दर साहब गंभीर हो गए और नेतरहाट विद्यालय खोलने के पीछे सरकार की मंशा, इसकी खूबियाँ, छात्रों के नामांकन की विधि, शिक्षण- प्रणाली, शिक्षकों की स्वतंत्रता, पुस्तकालय, वर्कशॉप, अन्य क्रियाकलाप, अनिवार्य खेलकूद प्रातः व्यायाम, आश्रम में स्वावलंबन-पाठ , आश्रमाध्यक्ष , आश्रममाता , पाकशाला आदि की जानकारी देने लगे। उन्होंने कहा कि मैं खुद सिंधिया स्कूल से यहाँ श्री पीयर्स के अनुरोध को स्वीकार कर आया। उन्होंने अनुरोध किया कि एक दो दिन रुककर इन्हें देखें और नेतरहाट का सूर्योदय, सूर्यास्त, लोअर घाघरी, फार्म आदि का भी भ्रमण करें। मेरे लिए उन्होंने अपने हाथों से एक प्रोग्राम भी बना डाला। उन्होंने मेरे रहने के लिए बंगला नंबर 5 में प्रबंध करवा दिया। एक गार्जियन की तरह उन्होंने मेरे एक एक चीज का प्रबंध रखा।

                                                              ---श्री कृष्ण स्वरूप प्रसाद

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