
Navayug School - yaadein


श्री जीवन नाथ दर - कर्मयोगी, विलक्षण, शिक्षाविद, स्वप्नदृष्टा, गांधीवादी के संरक्षक एवं सज्जन व्यक्तित्व के स्वामी।
- श्री अजय कुमार भटनागर. 02.05.2018
मैं उन सौभाग्यशाली लोगों में से एक हूँ जिसे उनका एवं माता जी का निकटतम सान्निध्य प्राप्त हुआ। उनका व्यक्तित्व किसी को भी सम्मोहित कर देने के लिए विवश करता था। उनके प्रशंसकों में कुछ नाम देखें - दिल्ली के उपराज्यपाल एवं उनकी पत्नी श्रीमती प्रसाद, श्री एम. एन. कपूर प्राचार्य मॉडर्न स्कूल बाराखम्भा, श्री डेंग प्राचार्य सेन्ट्रल एयर फोर्स स्कूल, नेशनल पब्लिक स्कूल कांफ्रेंस की सम्पूर्ण कॉम्यूनिटी - परन्तु शालीनता, विनम्रता एवं सादगी का कोई पर्याय नहीं।
किस विद्यालय से किस समय अपने को अलग कर लेना चाहिए - इसकी विलक्षण क्षमता उनके पास थी। उन्होंने अपनी सेवाएँ, मॉडर्न स्कूल बाराखम्भा, दून स्कूल - देहरादून, भारतीय विद्या भवन उदयपुर, सिंधिया स्कूल ग्वालियर, नेतरहाट पब्लिक स्कूल बिहार (वर्तमान झारखण्ड) एवं विकास विद्यालय राँची को दीं जिसकी अमिट छाप आज भी मैं सिंधिया स्कूल ग्वालियर, नेतरहाट विद्यालय एवं विकास विद्यालय में आज भी मुझे देखने को मिली। पाठकवृंद आप कभी सिंधिया स्कूल, नेतरहाट या विकास जाएँ तो दर साहब की अनेक कही-सुनी कथाएँ आपको सुनने को मिल जाएँगी।
एक सम्पूर्ण इंसान मैंने उनमें देखा – एक छोटी से घटना विकास विद्यालय में मुख्य फुटबाल मैदान में निकट के गाँ वालों की कुछ भैंसे आ गईं। प्रशासक ने उन्हें पशु कारागार में भिजवा दिया। भैंस वाले ग़रीब थे, क्षमा याचना करते दर साहब के आगे रोने लगे। दर साहब ने प्रशासक को बुलाया और आदेश दिया कि उनके व्यक्तिगत खाते से पैसे ले लो और इनकी भैंसें वापिस करवाओ।
एक बार विद्यालय की जीप राँची शहर जा रही थी। माता जी ने घर की कोई व्यक्तिगत मशीन ठीक कराने के लिए जीप में रखवा दी। दर साहब ने देखा और कहा कि यह विद्यालय के काम से विद्यालय की जीप जा रही है। यह मशीन उतार दो।
मैं 1976 में साक्षात्कार के लिए नवयुग आया। केमेस्ट्री लैब में अमरूद एवं सेब के Jam बने थे। उन्होंने मुझे घर में यह सब दिखाया। मैंने उनका स्वाद देखना चाहा तो बोले यह स्कूल का है। पैसे देने पड़ेंगे, रसीद मिलेगी। नवयुग के एक छात्र ने घरेलू समस्याओं से तंग होकर आत्महत्या का प्रयास किया। दर साहब ने मुझे साथ लिया। डॉक्टर से मिले, पूरी रात सफ़दरजंग अस्पताल के कॉरीडॉर में अख़वार बिछा कर बैठे रहे। ये वो दर साहब थे जिनको जानने और सम्मान देने वाले SSP, उस समय के IG और LG थे। उन्होंने किसी से सुविधा नहीं माँगी।
2 अक्तुबर के उत्सव में कोई माननीय गांधीवादी व्यक्तित्व आमंत्रित थे। एक छात्र ने भाषण दिया। उस समय भाषण Censored नहीं होते थे। छात्र ने गाँधी जी की गिन-गिनकर बुराइयाँ की और गांधीजी को बुरा-भला कहा। हम सभी हतप्रभ थे। सहमे थे। इस छात्र का अब क्या होगा। दूसरे दिन दर साहब ने छात्र को अपने कमरे में बुलाया और उस छात्र की बड़ी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि तुमने जो कुछ गांधी जी के लिए कहा वह मुझे पता तो नहीं था। मुझे एक नया दृष्टिकोण सुनने को मिला। इसके बाद उन्होंने पुस्तकालय अध्यक्ष श्रीमती चित्रा ठकार को बुलाया और कहा कि इस छात्र को नयी सड़क लेकर जाओ और इसकी पसन्द की गांधी जी से संबंधित किताबें खरीद कर दो। ये उन्हें पढ़ेंगे और पंद्रह दिन बाद गांधी जी पर दुबारा भाषण देंगे। एक और घटना बार-बार कहने पर भी छात्र खाना थाली में छोड़ते थे। उस समय खरी मँहगा था, लेकिन छात्रों को सलाद में दिया जाता था। दर साहब भोजनापरान्त भोजनालय में आए और देखा कि जगह-जगह खीरे के टुकड़े पड़े हैं। थाली में छात्रों ने सलाद छोड़ रखी थी। फिर क्या था। सर गुण ग्राहक थे। किसी भी सहकर्मी में या छात्रों में उसके गुणों की परख उनके व्यक्तित्व में ईश्वर प्रदत्त गुण था। वे सदा कहते थे, ‘’जो बिंध गया वो मोती’’। वे अपने सभी सहकर्मियों से उसका सर्वश्रेष्ठ निकाल लेते थे। सम्मान कोई दर साहब से सीखे। विकास विद्यालय में भूटान नरेश के कोई अति विशिष्ट प्रतिनिधि पधारे। अवकाश का दिन था। सर घर में थे। एक छात्र के पिता भी उनसे मिलने दर साहब के घर आए। मैं भी घर में ही था। दर साहिब ने जो एक कप चाय और बिस्कुट अधिकारी को परोसे बिल्कुल वही उन ट्रक ड्राइवर अभिभावक को भी। सदा की तरह सौ घण्टियाँ बजीं। छात्रगण पंक्तिबद्ध शीघ्रताशीघ्र मैदान में पहुँचे। दर साहब का लम्बा भाषण प्रारम्भ हुआ। परन्तु यह भाषण विचित्र था, यादगार था। उन्होंने सारे खीर के सारे टुकड़े एकत्र कर लिए थे एवं उन्हें पोटेशियम परमगनेट में घुलवा लिया था। भाषण का सार था कि जब तक ये खीरे हैं तब तक वे भोजन नहीं करेंगे, केवल ये खीरे ही खायेंगे। छात्र-छात्राएँ रो रहे थे। क्षमा याचना कर रहे थे। परन्तु इस बार दर साहब अडिग थे। दर साहब द्विभाषा के पक्षधर थे। वे चाहते थे कि छात्र बहुत अच्छी हिन्दी की समझ रखें, अपन भाषा में सीखें परन्तु धारा-प्रवाह हिन्दी बोलें।
दर साहब में समय के साथ रहने, बदलते समय में शिक्षा के क्षेत्र में तथा छात्र संबंधित शोध से अवगत रहने की अद्भुत लालसा एवं क्षमता थी। जब भारत में लोगों को मनोविज्ञान एवं परामर्शदाता की आवश्यकता को कोई बोध नहीं था। तब 1968 में उन्होंने एक आवासीय विद्यालय विकास में तथा 1976 नवयुग में मुझे पराशर्मदाता के पद पर नियुक्त किया। वे सदा समय से आगे चलते थे। तभी मैं उन्हें स्वप्नदृष्टा (Visionary) कहता हूँ।
वे इतने विद्यालयों के प्राचार्य रहे, बहुत चीज़ें भूल भी जाते थे, परन्तु अपने छात्रों के नाम कभी नहीं भूलते थे।
उस महान आत्मा को, महान शिक्षाविद् को और सबसे आगे अति सुन्दर इंसान को मेरा शत्-शत् प्रणाम।
Nov 12, 2018
युग पुरुष, श्रद्धेय जीवन नाथ दर
एक महान शिक्षाविद को मेरा शत-शत प्रणाम!
दर साहब एक ऐसे शिक्षाविद हैं जिन्हें मैं गांधीजी और ज़ाकिर हुसैन साहब की श्रेणी मैं रखना चाहूँगाI
उन्होंने मैकॉले से हटकर छात्रों में भारतीय परिपेक्ष्य में जीवन मूल्यों पर आधारित शिक्षा प्रदान करने की संकल्पना कीI वे स्वप्नदृष्टा थेI
उन्होंने जो कुछ सिखाना चाहा उसे स्वयं कियाI वे चाहते थे छात्रों में सादगी होI बड़े सपनें होंI महत्वाकांक्षा होI आत्मविश्वास होI छात्र स्वाभिमानी, संयमी, ईमानदार, कर्मठ होI ये सारे गुण छात्रों में समाहित हों, दर साहब ने इन गुणों को अपनाने के लिए कभी भाषण नहीं दियाI मैं सभी नवयुग, विकास एवं नेतरहाट के छात्रों से पूछूँगा क्या उन्होंने इन मूल्यों पर कभी दर साहब का भाषण सुनाI कभी नहींI उन्होंने इन मूल्यों को अपने जीवन में समाहित किया जो छात्रों के लिए प्रकाशस्तम्भ बनाI कम लोग जानते होंगे कि दर साहब महान भारतीय मनोवैज्ञानिक एस.एस. मोहसिन के घनिष्ट मित्र थेI मोहसिन साहब का Two Step Concept of Attitude Change और प्रधानजी की role modelling एक दूसरे के पूरक थेI
दर साहब का विश्वास था कि मानवीय संवेदना शिक्षित होने की पहली अनिवार्यता हैI उनका सम्पूर्ण शिक्षा दर्शन मानवता परक थाI वे मानते थे कि मानवता, संवेदनशीलता सिखाने से नहीं आतेI बालक इन्हें observational learning से स्वयं में समाहित करता हैI तभी मैं कहता हूँ कि दर साहब हम सब के role model थेI
शिक्षा एवं शिक्षा प्रणाली में वे creativity के पक्षधर थेI वे स्वयं innovative थेI नवयुग की आवश्यकताओं एवं परिस्थितियों के अनुसार उन्होंने painting के लिए गेरू, कोयला, पेड़ों की छाल, पत्तियों और घास को प्राथमिकता दीI पेड़ की कोमल शाखाओं को ब्रश बनाने की प्रेरणा दीI
छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए नाटकों का मंचन उनकी शिक्षा प्रणाली का महत्त्वपूर्ण हिस्सा था, परन्तु उन्होने फिज़ूलखर्ची से बचने की प्रेरणा दीI वे कहा करते थे कि भटनागर तुम छात्रों को अभिनेता बनाना चाहते हो या वे अभिनय सीखें और अपने विचारों एवं भावनाओं को व्यक्त कर पाएँ यह सिखाना चाहते होI यदि भावभिव्यक्ति ही उद्देश्य है तो किनारी बाज़ार से मँहगे costume क्यों? अभिनेता के सीने पर एक पट्टी जिस पर उसके चरित्र का नाम लिखा हो, वही काफ़ीI मैंने उनके इस विचार पर काम किया और सफ़लता पाईI
वे भोजन के प्रति बड़े सजग थेI वे छात्रों को भोजन का महत्त्व समझाना चाहते थेI अनेक उदाहरण हैं जब वे भोजन के निरादर पर अपने विचार लम्बी assembly करके व्यक्त करते थे एवं कभी-कभी स्वयं को पीड़ा दे कर अपनी बात छात्रों तक पहुँचाते थेI एक बार मँहगे खीरे के टुकड़ों को भोजनालय में बिखरे देख कर उन्होंने प्रण किया कि वे केवल ये खीरे ही खाएँगे, अन्य भोजन नहीं करेंगेI आज हम नवयुगियन, विकासियन एवं नेतरहाटियन भोजन थाली में नहीं छोड़तेI ये दर साहब का जादू हैI
वे ईमानदारी को शिक्षा का प्रमुख अंग मानते थे| ये भी वे भाषण से नहीं modelling से सिखाते थेI विकास में घर का कुछ सामान राँची जाना था जो विद्यालय कि जीप में रखा थाI उन्होंने तत्काल उसे वापिस घर भेजा क्योंकि गाड़ी विद्यालय के काम से जा रही थी जिसका लाभ व्यक्तिगत कार्य में सम्भव नहीं थाI
दर साहब बहुत उदार व्यक्तित्व के स्वामी थेI विकास विद्यालय के accounts clerk के पास उनका black money होता था जिससे वे लोगों की सहायता करते थेI माता जी को इसका पता नहीं होता थाI
दर साहब गुणग्राहक थेI वे सभी में सद्गुणों की परख रखते थे कहा करते थे, "जो बिंध गया वो मोतीI" सब में ईश्वर ने सद्गुण दिए हैंI sanitary inspector नहीं होना हैI यही कारण था वे सभी से कुछ अच्छा, सुंदर सृजनात्मक करवा लेते थे और बता पाते थे की उसमें क्या गुण हैंI
वे समय से बहुत आगे थेI 1968 में परमार्शदाता (Full time Counsellor) की परिकल्पना तथा sex education through counselling देना उनकी शिक्षा के प्रति अवधारणा का परिचायक हैI आज जो कुछ Made in China फ़िल्म कह रही है वह संदेश उन्होंने 1968 में अपने शिक्षकों एवं अभिभावकों को दे दिया थाI
उनकी दृष्टि में सभी समान थेI मेरे सामने की घटना हैI भूटान नरेश का डेलीगेशन उनके घर आया थाI उसी समय एक ट्रक ड्राइवर जिसका बच्चा विद्यालय में पढ़ता था, सर के पास आयाI दर साहब के घर में सभी का स्वागत एक जैसे कप और तश्तरी में चाय और बिस्कुट से किया गयाI कोई अंतर् नहीं था राजा और आम आदमी में, उनकी दृष्टि में दर साहब शिक्षक होने के लिए डिग्री में विश्वास नहीं रखते थेI उनका शिक्षक-चयन प्रतिभा और कौशल पर आधारित था, जिनकी परख वे अपने अनोखे अंदाज़ में किया करते थेI
खेल उनकी शिक्षा प्रणाली का अभिन्न अंग थाI परन्तु वे खेलों के द्वारा शारीरिक विकास, हार-जीत के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण एवं team work सिखाने के पक्षधर थे, इसलिए वे फ़ुटबॉल, खो-खो एवं ट्रैकिंग को अधिक महत्त्व देते थे I
शिक्षा द्वारा वे छात्रों समूह भावना, अपनापन, सहयोग, त्याग, सम्प्रेषण (कम्युनिकेशन), एवं cohesiveness उत्तपन्न करना चाहते थेI इसके लिए ही उन्होंने सदैव समूह गान, community singing, समूह नृत्य एवं Community lunch को प्राथमिकता दी | उनका यह प्रोसेस मुझे व्यक्तिगत रूप से हमेशा प्रभावित करता रहा, इसलिए मेरा मानना है कि नवयुग को अगर दुबारा लाना है तो हमें community singing और community lunch को लाना ही होगा |
दर साहब का विश्वास था कि शिक्षा मातृभाषा में सबसे सहज एवं सुगमता से होती है| अतः वे अपनी भाषा में शिक्षा प्रदान करने के पक्षधर थे परन्तु वे यथार्थ के प्रति पूर्णत: सजग थे | इसलिए वे हर छात्र को अंग्रेज़ी proficient होने के लिए प्रेरित करते थे | वे चाहते थे कि छात्र अपनी भाषा के प्रति स्नेह रखें और अंग्रेज़ी में कुशल हों |
ऐसे युगपुरुष, महानशिक्षाविद और इन सबसे ऊपर एक सुंदर मानव को मेरा शत-शत प्रणामयथार्थ|
अजय भटनागर
पूर्व नवयुगियन, विकासियन, नेतरहाटियन