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(Based on an interesting Sanskrit period incident, 1974, when Navayug was in Red bricks Building at Netaji Nagar, New Delhi) 

 

 

आदरणीय मंगला नवाथे मैम एवं 

नवयुग के अनुकरणीय गुरुजनों को समर्पित ~ 

 

- छठी क्लॉस में चश्मा चढ़ गया 

  आज के माहौल की बात होती

  तो ये फैशन का मामला होता 

  लेकिन उस वक्त की बात थी ~ मैं शर्म से गड़ गया  

- क्या करूं कहां जाऊं 

  चश्मा लगा के स्कूल जाऊं 

  सबको शकल कैसे दिखाऊं 

- खैर 

  वक्त गुजरता गया 

  चश्मा मेरे स्कूल बैग की 

  गहराईयों में ~ कहीं गुमशुदा हो गया 

- लेकिन 

  कहानी में TWIST आना  था 

  हकीकत तो ये थी 

  कि पास के अक्षर तो दिखते थे 

  दूर के अक्षर धुंधले दिखते 

  इतना बड़ा GREEN BOARD ~ भरा होने पर भी मेरे लिए वीराना था 

- मैं बड़ा मजबूर था 

  सामने के सफेद अक्षरों से 

  कोसों दूर था 

- मरता क्या न करता 

  चोरों की तरह 

  अपने ही बैग में हाथ डाला 

  चश्मा निकाला  

  और बिना पूरा खोले 

  एक आंख से सटाकर 

  सामने पढ़ने की कोशिश 

  करने ही लगा था 

  कि

  सर पे पीछे से 

  किसी ने लगा दिए ~ एक दो प्यारे से चांटे 

                              मैं कांप गया 

                              पीछे मुड़ के देखा 

                              तो मैम नवाथे 

- वैसे तो वे 

  हम सभी के लिए

  प्यारी सी ममता की मूरत थीं   

  लेकिन उस वक्त

  मैं था चोर ~ और वे 

  थानेदार की सूरत थीं 

- मैम बोलीं 

  बेटे खड़े हो जाओ 

 चश्मा किसका है ~ जल्दी से बताओ 

- मुझे काटो तो खून नहीं 

  आवाज गले में फंस रही थी ~ पूरी क्लॉस हंस रही थी 

- किसी तरह 

  हिम्मत जुटाई ~ मैम को दी अपनी सफाई 

  कि मैम 

  चश्मा मेरा ही है ~ अभी नया ही लगा है 

  पहनने में शरम आती है 

- मैम बड़े प्यार से मुस्कुराईं 

  अपना खुद का चश्मा उतारा 

 और 

 लैंस की मोटाई ~ मुझे दिखाई 

 और 

 मुझसे कहा ~ 

 बेटा तुम इतने नजदीक से 

 अगर अपने हाथ की पांचों उंगलियां

 मुझे दिखा के गिनने को कहोगे ~ 

 तो शायद मैं ढंग से गिन नहीं पाऊंगी 

- चश्मा नहीं लगाओगे 

  तो कल को तुम्हारी भी 

  यही हालत हो जाये ~ मैं सहन नहीं कर पाऊंगी.....

..........................................................

 

- वो सन चौहत्तर की क्लॉस थी 

  और आज इकतालीस साल के बाद भी 

  वो सबक भूला नहीं हूं 

- हालात के चश्मे को 

  सर आंखों पे बिठा के ~ स्वीकार करो 

  और खुली आंखों से ~ हकीकत का सामना करो 

  यही तो आपका दिया हुआ सबक था 

- चश्मे

  आये और गए 

  मैम 

  जो आपने दिया 

  जो सब 

  गुरुजनों ने दिया ~ वो नजरिया नहीं बदला 

                            मेरा ही नहीं 

                            हम सब का

                            नवयुग का 

 

प्रणाम हम सभी का स्वीकार कीजिये 

                              

                         

                        - Devendra Negi

                          1980 Batch

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